राज्य की मूल अवधारणा में देवत्व की प्रधानता है न की भौतिकता की ..इसलिए इस राज्य में भौतिकता नही अपितु देवत्व को बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए यहाँ की देवशक्तयों के मूलकेन्द्र देवतीर्थों के विकास से ही उत्तराखंड की उन्नति सम्भव है डॉ बिजल्वाण ने आगे कहा कि आज हमारा उत्तराखंड 24 वर्ष का युवा हो गया है लेकिन यहां के युवा अपनी बोली गढ़वाली कुमाउनी जौनसारी से विमुख होते जा रहे हैं अभी तक हमारी बोली को भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है जिसके लिए अधिक प्रयास करने की अवश्यकता है संगोष्ठी में डॉ शैलेंद्र प्रसाद डंगवाल ने कहा कि उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए जो परिकल्पना की गई थी वहां परिकल्पना सार्थक नहीं हुई है देवभूमि को देखते हुए यहां पर संस्कृत भाषा को जो द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया था पर आज डेड दशक बीतने के बाद भी संस्कृत भाषा के उन्नयन के लिए धरातल पर कोई नया कार्य नहीं दिखाई दे रहा है जो अत्यंत चिंतनीय है इस अवसर पर महाविद्यालय के सभी अध्यापकों ने अपने अपने विचार रखे। साथ ही वरिष्ठ पत्रकार आह्निक वार्ता दैनिक संस्कृत समाचार पत्र के संपादक श्री शुक्ला जी ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी में डॉ शैलेंद्र प्रसाद डंगवाल डॉ सीमा बिजल्वाण आचार्य मनोज शर्मा आचार्य नवीन भट्ट डॉ मोहित बडोनी सहित छात्र छात्राएँ उपस्थित थे।