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नशे के खिलाफ लड़ाई में कब मिलेगी सफलता

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नशा मुक्त भारत आने वाली पीढ़ियों और भविष्य के लिए बहुत जरूरी है, आज हम इस लड़ाई में ऐसे मुकाम पर खड़े हैं। नशे के खिलाफ जहां हम दृढ़ संकल्प, सामूहिक प्रयास, टीम इंडिया और पूरी सरकार के दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ें तो जीत निश्चित है नशे के सौदागरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए जो न केवल पैसे के लिए देश की युवा पीढ़ी को बर्बाद करते हैं, बल्कि देश को भी बर्बाद कर देते हैं। नार्काे-आतंकवाद के माध्यम से अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता उचित प्रक्रिया के माध्यम से दवाओं को नष्ट करना आवश्यक है, अन्यथा, भ्रष्टाचार के कारण दवाओं के रोटेशन की संभावना होगी, दवाओं को नष्ट करने के कार्यक्रम सार्वजनिक रूप से आयोजित किए जाने चाहिए, जिससे जन जागरूकता बढ़ेगी। अगर हम सुनियोजित और समन्वित तरीके से नशे के खिलाफ लड़ेंगे, तभी हम जीत पाएंगे। आजादी की सौवीं वर्षगांठ में नशा मुक्त भारत बनाकर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक अच्छा भविष्य दे सकें। सभी राज्यों को नार्काे संबंधी एफएसएल अपग्रेडेशन के लिए भी केंद्रीय निधि का उपयोग करना चाहिए। जिलों को समुद्री मार्ग से नशीली दवाओं की तस्करी को रोकने के लिए केंद्रीय एजेंसियों के साथ अपने समन्वय को और मजबूत करना चाहिए। यह लड़ाई दलगत राजनीति और राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर लड़ी जानी चाहिए, जीरो टॉलरेंस दृष्टिकोण के साथ सभी राज्य सरकारों को नशा मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। नशा एक ऐसी कुरीति है जिसके सेवन से मनुष्य को शरीर खराब होने के साथ-साथ उसे आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है। इसलिए युवा पीढ़ी को नशे से दूर रहना चाहिए।
नशा और नाश के मध्य सिर्फ एक लकीर का ही फर्क नजर आता है। अगर हम सभ्य समाज की पंक्ति को छोडक़र बुरी संगत की तरफ कदम बढ़ाकर नशे को अपनाते है तो व्यक्ति का सर्वनाश होना तय है। आज की युवा पीढ़ी तेजी से नशे की गर्त में जा रही है, जोकि चिंता का विषय बन गया है। कई अभिभावक भी अपने बच्चों की नशे की आदत से परेशान हो गए हैं। नशा रुपी दानव युवा पीढ़ी को खोखला कर रहा है। ऐसे में कई लोग नशा बेचकर युवा पीढ़ी को इस दलदल में धकेलकर खूब चांदी कूटने में लगा हुआ है। युवा गलत संगत में पड़कर अपनी जवानी को बर्बाद करने पर उतारु हो गए है। बच्चों की करतूतों से कई अभिभावक भी परेशान हैं। युवा तेजी से पैसे कमाने के चक्कर में नशे के कारोबार में लग रहे है। नशे का कारोबार समाज के लिए अभिशाप बनता जा रहा है। अभी तक कई युवा नशे के अपनाकर अपनी जिंदगी से हाथ तक धो बैठे हैं। युवा खुद तो मौत का ग्रास बन रहे है, लेकिन परिजनों को भी जिंदगी भर न भुलने वाला दर्द देकर जा रहे हैं। युवा नशे के मकड़जाल में फंसकर बर्बादी के कगार पर पहुंच रहे हैं। इससे उनकी सेहत तो खराब हो ही रही है साथ ही उनका सामाजिक स्तर भी गिरता जा रहा है। नशे का सामान मेडिकल स्टोरों और बुक डिपो आदि पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इस पर रोक लगाने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग की ओर से बार-बार कार्रवाई की जाती है, लेकिन इसके क्रेता और विक्रेता अपनी आदत में बदलाव लाने को तैयार नहीं हैं। युवा वर्ग नशे के दलदल में फंसता जा रहा है। नशाखोरी की आदत 12 से 20 साल तक के युवाओं में अधिक देखने को मिल रही है। इससे आने वाली पीढ़ी के भविष्य पर संकटों के बादल मंडराने लगे हैं। चिकित्सकों की मानें तो कुछ लोगों के जहन में ये बात आने पर कि उनका बच्चा किसी नशे की लत में लग गया है तो वे उसे नशा मुक्ति केंद्र पर डालने की कोशिश करते हैं। इससे उसकी यह आदत बिल्कुल भी नहीं छूटेगी। क्योंकि नशे की आदत छुड़ाने का सही इलाज चिकित्सकों के पास ही है। चिकित्सकों का यहां तक दावा है कि कुछ दिनों उपचार करने के बाद पूरी तरह से नशे से आजादी पाई जा सकती है। मेडिकल स्टोरों से नशे की गोली आसानी से मिल जाती हैं, जबकि बुक डिपो आदि पर फ्लूड आसानी से उपलब्ध हो जाता है। युवा व्हाइटनर यानी फ्लूड हाथ पर लगाकर या फिर रुमाल आदि के माध्यम से उसे सूंघकर नशा करते हैं। साथ ही कफ सीरप कोरेक्स, दर्द निवारक आयोडेक्स को ब्रेड पर लगाकर खाते हैं। इसके कुछ देर बाद ही नशा होना शुरु हो जाता है। शराब पीने वालों से ज्यादा भांग का गोला, चरस, अफीम, स्मैक आदि का इस्तेमाल करते हैं। युवा पीढ़ी के नशे की जद में आने के बाद से अपराधों इजाफा हो रहा है। युवा विभिन्न माध्यमों से नशा कर जरायम की दुनिया में कदम रख रहे हैं। चोरी, डकैती, लूटपाट आदि करना मानों उनका शौक बन गया हो। नशे का सबसे आसान तरीका फ्लूड है। युवा हाथ पर या फिर रुमाल पर व्हाटनर यानी फ्लूड लगाकर उसे सूंघते हैं। नशे जद में केवल लड़के ही नहीं, बल्कि लड़कियां बड़े स्तर पर नशे की आदी हो चुकी हैं।
नशा करने के कई नुकसान हैं। किसी भी प्रकार का नशा करने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है। बार-बार उल्टी दस्त लगने शुरू हो जाते हैं। दिमाग में सूजन आने का खतरा रहता है। हार्टअटैक के चांस बढ़ जाते हैं। फेफड़ों और गले में कैंसर होता है। नेत्र ज्योति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यौन रोग होने की संभावना करीब 95 फीसदी बढ़ जाती है।

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