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श्रीनगर, 6 अक्टूबर। गढ़वाल विवि के चौरास परिसर स्थित प्रशिक्षण केंद्र में आयोजित गढ़वाली भाषा व्याकरण व मानकीकरण पर दो दिवसीय कार्यशाला का समापन हो गया है। कार्यशाला में देशभर से पहुंचे भाषाविदों व साहित्यकारों ने गढ़वाल भाषा व्याकरण में मानकीकरण व इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर चर्चा की गई।
उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली व भाषा प्रयोगशाला गढ़वाल विवि के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय गढ़वाल भाषा व्याकरण व मानकीकरण विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के पहले सत्र की अध्यक्षता लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने की जबकि दूसरे सत्र की अध्यक्षता विष्णुदत्त कुकरेती ने की।
कार्यशाला के समन्यवक अनिल पंत ने कहा कि पहले सत्र में गढ़वाली भाषा व्याकरण के मानकीकरण को लेकर चर्चा हुई जबकि दूसरे सत्र में छात्रों के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। डॉ. नंद किशोर हटवाल ने व्याख्यान के माध्यम से गढ़वाली भाषा के मानकीकरण को समझाया। कहा कि गढ़वाली भाषा में क्षेत्र भौगोलिक स्थिति के अनुसार बदलाव देखने को मिलते हैं।
ऐसे में उस प्रारूप को व्यवहार में लाना होगा, इसे आसानी से हर कोई समझ व अपना सके। कहा कि सिरनगरी गढ़वाली भाषा प्रारूप को व्यवहार में लाना सबसे बेहतर है। डॉ. हटवाल ने कहा कि मानकीकरण के बिना गढ़वाली भाषा का आधुनिकीकरण नहीं हो सकता है। डॉ. कुकरेती ने कहा कि गढ़वाली भाषा के मानकीकरण से पूर्व लिखित साहित्य को संकलित कर उसका अध्ययन करना बेहद आवश्यक है। आशीष सुंद्रियाल, वीरेंद्र सुंद्रियाल, रमाकांत बेंजवाल व बीना बेंजवाल ने छात्रों के मन में उठ रहे सवालों के जवाब दिए।
नई पीढ़ी को भाषा विरासत में सौंपनी से ही बचेगी संस्कृति
गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि नई पीढ़ी को अपनी भाषा विरासत में सौंपनी होगी तभी हमारी संस्कृति बच पाएगी। उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच दिल्ली के संयोजक दिनेश ध्यानी ने कहा कि 12 अक्तूबर से इंग्लैंड में रहने वाले प्रवासियों के लिए ऑनलाइन माध्यम से गढ़वाली भाषा सीखने की कक्षाओं का आयोजन किया जाएगा। इस दौरान वक्ताओं ने छात्रों को रमेश घिल्डियाल की पज्जल पुस्तक पढ़ने के लिए प्रेरित किया कहा कि इसमें गढ़वाली पहेलियां व इनके हिंदी भावार्थ शामिल हैं।
कार्यशाला के दौरान गिरीश सुंदरियाल की सद्य प्रकाशित पुस्तक गढ़वाल की लोक गाथाएं का लोकार्पण भी किया गया। इस दौरान प्रो मंजुला राणा, मदन मोहन डुकलाण, कुलानंद घनशाला, वीरेंद्र पंवार, गणेश खुगशाल, गिरधारी रावत आदि मौजूद रहे।