देहरादून, 11 फरवरी। उत्तराखंड के प्रसिद्ध हास्य कलाकार घनानंद गगोडिया उर्फ घन्ना भाई का निधन हो गया है. उन्होंने देहरादून के महंत इंद्रेश हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. बीते दिनों तबीयत खराब होने पर उन्हें महंत इंद्रेश हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था, जहां घनानंद को कई दिनों से वेंटिलेटर पर रखा गया था. वहीं, उनके निधन की खबर से प्रशंसकों और परिजनों में शोक की लहर दौड़ गई है.
‘अफु रवे भि होलू पर हमेशा हमथें हैंसाणु रै, पर आज हम सब्बू थें रूले गे…दुःखद खबर. अभी डॉक्टर्स द्वारा डिक्लियर करे गै कि हमारा बीच का प्रसिद्ध हास्य कलाकार घन्ना भाई अब हमारा बीच नि रैनि, भगवान ऊँका परिवार थें ये दुःख सहन करणा कि शक्ति प्रदान करों..ॐ शांतिः’.
नरेंद्र सिंह नेगी, प्रसिद्ध लोकगायक
कई गढ़वाली फिल्मों में घन्ना भाई ने किया था हास्य अभिनय
घन्ना ने रामलीला के मंच से अपना सफर शुरू किया। 1980 के दशक में गढ़वाली फिल्मों का दौर शुरू हुआ, तो साल-1974 से निरंतर लोगों को हंसाते-गुदगुदाते घन्ना के लिए इन फिल्मों में अलग से कॉमेडी सीन रखे जाने लगे। पर्दे पर घन्ना की एंट्री होते ही सिनेमा हॉल में ठहाके गूंज उठते। साल-1986 में आई सुपरहिट गढ़वाली फ़िल्म ‘घरजवैं’ में घन्ना भाई की कॉमेडी ने जान डाली। साल-1987 में पहाड़ की महिला के जीवन संघर्ष पर बनी गंभीर कथावस्तु वाली फिल्म ‘कौथिग’ में भी उन्होंने हास्य पैदा किया। इसके बाद उन्होंने ‘चक्रचाल’, ‘बेटी ब्वारी’, ‘ब्वारी हो त इन्नी’, ‘बंटवारु’, ‘घन्ना भाई एमबीबीएस’, ‘घन्ना-गिरगिट’, ‘यमराज’, ‘घन्ना भाई चालबाज’ ‘बथौं: सुबेरो घाम’ समेत कई फिल्मों में अपनी कॉमेडी से दर्शकों का मनोरंजन किया। बताते हैं कि शुरुआती दिनों में नरेंद्र सिंह नेगी तबला बजाते थे और घन्ना भाई नृत्य करते थे।
‘सरा..रर..पौं-पौं’ और ‘अब कथगा खैल्यू’
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के अनेक म्युजिक एलबम में घन्ना भाई ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अभिनय किया। इनमें सबसे लोकप्रिय हुआ ‘सरा…रर…पौं-पौं…चली भै मोटर चली…।’ पहाड़ में 80-90 के दशक में बसों के भीतर की कुरचम-कुरचा का सजीव चित्रण किया गया। घन्ना इसमें बस कंडक्टर की भूमिका में रहे। वहीं, जब नेगीदा ने साल-2010 में ‘अब कथगा खैल्यू…’ में भ्रष्टाचार और सत्ता के शीर्ष पर कटाक्ष किया, तो इसमें भी घन्ना भाई ने अहम किरदार निभाया।
नेगी ने तैयार करवाई थी घन्ना की पहली कैसेट
घनानंद घन्ना का पहला कैसेट 1970 के दशक में नरेंद्र सिंह नेगी ने रिकॉर्ड करवाया था। नेगीदा बताते हैं कि घन्ना ने कुछ प्रोग्राम दिए, तो उसके बाद वे उन्हें दिल्ली लेकर गए। वहां सरस्वती रिकॉर्डिंग कंपनी से घन्ना भाई के हास्य-व्यंग और चुटकुलों की कैसेट तैयार करवाई। इस कैसेट की शुरुआत में उन्होंने भी घन्ना के बारे में कुछ पंक्तियां रिकॉर्ड कराईं। इस तरह घन्ना का पहला कैसेट श्रोताओं के बीच आया और लोकप्रिय हुआ। इसके बाद घन्ना की कॉमेडी के कई कैसेट 80 और 90 के दशक में आए।
2012 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा
रंगमंच पर सबके दिल जीतने वाले घनानंद राजनीति के क्षेत्र में खास जगह नहीं बना पाए। 2012 के विधानसभा चुनाव में वे पौड़ी आरक्षित सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे। लेकिन कांग्रेस के सुंदरलाल मंद्रवाल से चुनाव हार गए। कांग्रेस को तब 19389 व घन्ना भाई को 16483 मत पड़े थे। हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में घनानंद दर्जाधारी राज्य मंत्री रहे। वे उत्तराखंड संस्कृति साहित्य एवं कला परिषद के उपाध्यक्ष रहे। इसी दौरान राज्य सरकार ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से भी नवाजा। वर्ष 2012 में राजनीति में आने के लिए उन्होंने वन विभाग में सहायक विकास अधिकारी के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी।