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उत्तराखंड का लोक पर्व इगास

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श्रेष्ठन्यूज़ देहरादून उत्तराखंड संपादक वन्दना रावत।

देहरादून। दीपावली के 11वें दिन एकादशी पर उत्तराखंड में लोकपर्व इगास/बूढ़ी दीपावली मनाने की परंपरा है। मान्यता के अनुसार गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी के राजा महीपति शाह की सेना के सेनापति थे। करीब 400 साल पहले राजा ने माधो सिंह को सेना लेकर तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा।
इसी बीच बग्वाल (दिवाली) का त्यौहार भी था, परंतु इस त्योहार तक कोई भी सैनिक वापस न आ सका। सबने सोचा माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने भी दिवाली (बग्वाल) नहीं मनाई।
लेकिन दीपावली के ठीक 11वें दिन माधो सिंह भंडारी अपने सैनिकों के साथ तिब्बत से दवापाघाट युद्ध जीत वापस लौट आए। इसी खुशी में दिवाली मनाई गई। खास बात ये है कि यह पर्व भैलो खेलकर मनाया जाता है। तिल, भंगजीरे, हिसर और चीड़ की सूखी लकड़ी के छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर इन्हें विशेष रस्सी से बांधकर भैलो तैयार किया जाता है। पूजा अर्चना कर भैलो का तिलक किया जाता है। फिर ग्रामीण एक स्थान पर एकत्रित होकर भैलो खेलते हैं। भैलो पर आग लगाकर इसे चारों ओर घुमाया जाता है। कई ग्रामीण भैलो से करतब भी दिखाते हैं। पारंपरिक लोकनृत्य चांछड़ी और झुमेलों के साथ भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू आदि लोकगीतों के साथ मांगल व देवी-देवताओं की जागर गाई जाती हैं। यह दूसरा मौका है जब उत्तराखंड में लोकपर्व इगास को लेकर अवकाश घोषित किया गया। इससे पूर्व पिछले वर्ष भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इगास पर राजकीय अवकाश घोषित किया था।

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