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उत्तराखंड का एक ऐसा अनोखा मंदिर,पुजारी और भक्त पीठ घुमा कर पूजा करते हैं।

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देहरादून। उत्तराखंड का एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहाँ श्रद्धालुओं से लेकर पुजारी तक को देवता की मूर्ति के दर्शन करने की आज्ञा नहीं है। पुजारी और भक्त पीठ घुमा कर पूजा करते हैं। लोगों में देवता के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास है। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से लगभग 160 किमी दूर सीमांत विकासखंड मोरी में यमुना नदी की सहायक टौंस नदी के किनारे नैटवाड़ गांव में पोखू देवता का प्राचीन मंदिर स्थित है। पोखू देवता को इस क्षेत्र का राजा माना जाता है। पोखू देवता को इस क्षेत्र का क्षेत्रपाल या राजा माना जाता है। इस क्षेत्र के प्रत्येक घर में पोखू देवता को दरांतियों और चाकू के रूप में पूजा जाता है। पोखू देवता इस क्षेत्र के क्षेत्रपाल होने के नाते, थोड़े कठोर स्वभाव के माने जाते हैं। वे अनुशाशन प्रिय और गलती करने वाले को दंड देते हैं। कहा जाता है कि देवता का मुंह पाताल में और कमर के ऊपर का भाग पेट आदि धरती पर हैं, ये उल्टे हैं और नग्नावस्था में हैं। इसलिए इस हालत में इन्हें देखना अशिष्टता है, यही वजह है कि पुजारी से लेकर सभी श्रद्धालु इनकी ओर पीठ करके पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि क्षेत्र में किसी भी प्रकार की विपत्ति या संकट के काल में पोखू देवता गांव के लोगों की मदद करता है।
पुजारी रात को भविष्यवाणी करता है। गांव की खुशहाली, फसल उत्पादन आदि के संबंध में होने वाली पुजारी की भविष्यवाणी सच साबित होती है। अपनी इन्हीं विशेषताओं और मान्यताओं के कारण पोखू महाराज का मंदिर एक तीर्थ के रूप में विख्यात है और यहां आने वाले पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। नैटवाड़ स्थित पोखू देवता के मंदिर के पहले कक्ष में बलि की वेदी पर खून के सूख चुके छीठें हैं। इसके अंदर के कक्ष में शिवलिंग स्थापित है। जिसके पीछे पोखू देवता का कक्ष है। यहां पोखू देवता का चेहरा किसी को नहीं दिखाई देता। जिससे यह दृश्य भय उत्पन्न करता है। इस कारण भी पोखू देवता की पूजा करने वाले पुजारी से लेकर सभी श्रद्धालु देवता की ओर पीठ करके ही पूजा अर्चना करते हैं। प्राचीन वेद पुराणों में पोखू महाराज को कर्ण का प्रतिनिधि व भगवान शिव का सेवक माना गया है। जिनका स्वरूप डरावना और अपने अनुयायियों के प्रति कठोर स्वभाव रखने वाला है। इनके क्षेत्र में कभी चोरी व अन्य कोई अपराध नहीं हुए। पोखू देवता को न्याय का देवता माना जाता है। पोखू देवता के बारे में ऐसी मान्यता है कि जिसे कहीं न्याय नहीं मिलता उसे पोखू देवता के मंदिर में अवश्य मिलता है। यही कारण है कि लोग यहां दूर-दूर से अपनी फरियाद लेकर पहुंचते हैं। पोखू देवता को इस क्षेत्र का क्षेत्रपाल या राजा माना जाता है। इस क्षेत्र के प्रत्येक घर में पोखू देवता को दरांतियों और चाकू के रूप में पूजा जाता है। पोखू देवता इस क्षेत्र के क्षेत्रपाल होने के नाते, थोड़े कठोर स्वभाव के माने जाते हैं। वे अनुशाशन प्रिय और गलती करने वाले को दंड देते हैं। लोगों का मानना है कि पोखू देवता के मंदिर (कोर्ट) में उन्हें तुरंत न्याय मिलता है। नवम्बर महीने में इस मंदिर में भव्य क्षेत्रीय मेला लगता है। इस मेले में रात को यहाँ का पुजारी क्षेत्र के फसल उत्पादन और खुशहाली के बारे में भविष्यवाणी करता है। और यह भविष्यवाणी हमेशा सच भी साबित होती है। इन्हीं मान्यताओं  के कारण पोखु देवता का मंदिर एक स्थानीय तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ सुबह शाम दो बार पूजा की जाती है। पूजा से पहले पुजारी रूपिन नदी में स्नान करके वहां से जल भर कर लाते हैं। इसके बाद लगभग आधे घंटे तक, ढोल के साथ मंदिर में पोखू देवता की पूजा होती है।

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