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15 जगह नदी में समा गया था पैदल मार्ग, खतरनाक पगडंडियों के सहारे पहुंचे यात्रियों तक

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देहरादून: ऊपर से मलबे के साथ पत्थरों की बरसात और नीचे मंदाकिनी नदी का रौद्र रूप। यह था 31 जुलाई की रात केदारघाटी में आई आपदा के बाद का दृश्य। मंदाकिनी ग्यारह साल बाद पहली बार ऐसे रौद्र रूप में दिखी। सूचना पर एसडीआरएफ की टीम मौके पर पहुंची तो आपदा के खौफनाक दृश्य देख एक बार बचाव टीम के कदम भी ठहर गए। हाईवे, पैदल मार्ग, पुल सब कुछ तबाह होने से दूसरी ओर हजारों यात्री और स्थानीय लोग अपनी जान बचाने को पत्थरों की आड़ का सहारा लिए हुए थे।

इन लोगों तक पहुंचना अत्यंत मुश्किल था लेकिन एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, डीडीआरएफ और उत्तराखंड पुलिस के जवान अपनी जान को जोखिम में डालकर सभी लोगों को सुरक्षित रेस्क्यू के लिए कूद पड़े। एसडीआरएफ की आठ टीमें मौके पर मुस्तैद हो गई। सोनप्रयाग से आगे हाईवे का 150 मीटर हिस्सा नदी में समाने से दूसरी ओर पहुंचना बेहद मुश्किल था। अगले दिन सुबह ड्रोन से देखने पर नदी किनारे का रास्ता सुरक्षित दिखा तो वहां किसी तरह रस्सी बांधने का इंतजाम किया गया। फिर जवानों ने खतरों से खेलते हुए पंद्रह हजार से ज्यादा यात्रियों को सुरक्षित निकाला। थोड़ी सी भी चूक जान पर भारी पड़ सकती थी, लेकिन रेस्क्यू टीम ने सावधानी बरतते हुए एक-एक व्यक्ति को सुरक्षित निकाला।

यात्रा मार्ग में जगह जगह पर फंसे यात्रियों को सुरक्षित निकालना बेहद ही चुनौतीपुर्ण कार्य था। 16 किमी का पैदल मार्ग करीब 29 स्थानों पर भूस्खलन होने से क्षतिग्रस्त हो गया था। 15 जगहों पर तो रास्ते का नामोनिशान ही मिट गया था। संचार नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त होने से किसी भी यात्री और अन्य लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा था। जवानों ने किसी प्रकार खतरनाक पगडंडियों के सहारे चीड़बासा पहुंचकर वहां तहस नहस हेलीपैड को हेलीकॉप्टर के उतरने लायक बनाया। फिर हेलीकॉप्टर से यहां फंसे सभी यात्रियों और लोगों को सकुशल रेस्क्यू किया गया।

सीएम धामी का कुशल आपदा प्रबंधन आया काम
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कुशल और मजबूत आपदा प्रबंधन के चलते प्रदेश सरकार इस मुश्किल चुनौती से पार पाने में कामयाब रही। मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 की आपदा में रह गई कमियों से सबक लेते हुए यात्रा शुरू होने से पहले ही आपदा ने निपटने की पूरी तैयारी की थी। इसके लिए प्लान बी बनाया गया था। यही नहीं रेस्क्यू अभियान की निगरानी की कमान अपने हाथों में लेने के साथ मुख्यमंत्री धामी दो बार ग्राउंड जीरो पर भी पहुंचे। इस प्रकार 15 हजार से अधिक यात्रियों और स्थानीय नागरिकों को सकुशल निकाला गया।

भयावह था वह मंजर
अतिवृष्टि की सूचना पर लिंचोली से जब एसडीआरएफ की टीम भीमबली की ओर रवाना हुई तो आगे का मंजर बहुत भयावह था। मूसलाधार बारिश के बीच भीमबली के पास अचानक बादल फटने से जवानों के कदम ठिठक गए। बारिश के साथ छाया अंधेरा और मंदाकिनी का उफान डरा रहा था। लेकिन रेस्क्यू टीम जान की परवाह न करते हुए मोर्चे की ओर बढ़ गई।

पशुधन की भी चिंता
प्रदेश सरकार को पशुधन की भी पूरी चिंता है। केदारनाथ आपदा के चलते यात्रा मार्ग में अभी भी सैकड़ों घोड़े खच्चर फंसे हुए हैं। सरकार ने इनके लिए हेलिकॉप्टर से छह टन चारा भिजवाया है। साथ ही उनके उपचार के लिए आवश्यक दवाओं की व्यवस्था भी गई है। पशुपालन विभाग के अधिकारियों को घोड़ा खच्चर मालिकों से संपर्क करने का निर्देश दिया गया है।

यात्रियों के लिए थी खाने-पीने की पुख्ता व्यवस्था
केदारनाथ यात्रा मार्ग ध्वस्त होने से केदार धाम और अन्य स्थानों में फंसे यात्रियों के लिए जिला प्रशासन, गढ़वाल मंडल विकास निगम और मंदिर समिति की ओर से खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की गई थी। यात्रा मार्ग में फंसे सभी लोगों तक फूड पैकेट पहुंचाए गए। कुछ संस्थाओं ने भंडारे की व्यवस्था की।

फंसे यात्रियों के लिए हेलिकॉप्टर ने एक दिन में भरी 40 उड़ान
केदारघाटी आपदा में फंसे लोगों को एयरलिफ्ट करने के लिए निजी हेली सेवाओं के अलावा वायुसेना की मदद ली गई। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद निजी कंपनी के हेलिकॉप्टर ने एक दिन में 40 उड़ान भरकर आपदा में फंसे लोगों को एयरलिफ्ट किया। सात दिन तक चले रेस्क्यू में 3300 लोगों को एयरलिफ्ट किया गया। निजी कम्पनियों के छह हेलिकॉप्टर के अलावा वायुसेना के चिनूक और एमआई-17 विमान से भी यात्रियों को सुरक्षित निकाला गया।

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