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ऐहतियातन डोज क्या है और इसकी जरूरत क्यों, इसे कौन लगवा सकता है।

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श्रेष्ठन्यूज़ देहरादून उत्तराखंड संपादक वन्दना रावत।

देहरादून। कोरोना के लगातार नए-नए वेरियंट आ रहें है। इस बीच 10 अप्रैल से सरकार ने 18 से 59 साल तक के लोगों को ऐहतियातन डोज लगवाने का रास्ता साफ कर दिया है। लेकिन सवालबना हुआ है कि क्या ऐहतियातन डोज सभी के लिए जरूरी है! यह सभी को लगवानी चाहिए? ऐसे तमाम सवालों पर विशेषज्ञों की राय जानना जरूरी है।

 

ऐहतियातन डोज क्या है और इसकी जरूरत क्यों? इसे कौन लगवा सकता है?

कोरोना के मामले में देखा गया है कि वैक्सीन लगवाने के बाद जो ऐंटिबॉडी बनती है, वह ज्यादातर मामलों में 6 से 8 महीनों तक रहती है। ऐहतियातन डोज उन लोगों के लिए है जिनकी इम्यूनिटी कमजोर स्थिति में है। ज्यादातर मामलों में यह किसी बीमारी की वजह से होती है। ऐसे लोगों को ऐहतियातन डोज लगवानी चाहिए। यह पहली और दूसरी डोज लगने के बाद ही लगवाई जा सकती है। जिस किसी को दूसरी डोज लिए हुए 9 महीने का वक्त बीत चुका है और उसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है। ऐसे सभी लोग ऐहतियातन डोज लगवा सकते हैं।

इनके लिए ऐहतियातन डोज जरूरी

फ्रंटलाइन वर्कर्स, जैसे- मेडिकल स्टाफ, बैंक स्टाफ, पुलिस, मीडिया के लोग आदि। 18 साल से ज्यादा उम्र के ऐसे लोग जिन्हें कैंसर, लिवर, किडनी, हार्ट, लंग्स खासकर टीबी की बीमारी है। अगर इन अंगों का ट्रांसप्लांट हुआ है तो भी इम्यूनिटी की स्थिति कमजोर मानी जाती है। इनके अलावा शुगर के पुराने मरीज, जो पहले गंभीर रूप से बीमार रहे हैं और कम से कम 7 दिनों तक स्टेरॉइड की हेवी डोज चली है।

बीते दिनों में कोरोना इंफेक्शन की वजह से जो मौतें हुईं उनमें 75 से 80 फीसदी लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा थी। इसलिए हाई रिस्क को देखते हुए 10 जनवरी को 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए प्रिकॉशनरी डोज की शुरुआत की गई थी। सरकार ने इसे सभी के लिए जरूरी नहीं बनाया है। जिसे इसकी जरूरत है, वह लगवाए। यही कारण है कि इसे ऐहतियातन (प्रिकॉशनरी) डोज कहा गया है, बूस्टर डोज नहीं।

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