Advertisement Section

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने विश्व लिवर दिवस पर फैटी लिवर के बारे में किया जागरूक

Read Time:8 Minute, 11 Second

देहरादून। विश्व लिवर दिवस पर मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने फैटी लिवर के लक्षण, कारण, निदान और उपचार के बारे में लोगों को जागरुक किया। फैटी लिवर, जिसे मेडिकल भाषा में हिपैटिक स्टीटोसिस कहा जाता है, आज के दौर में तेजी से फैल रही बीमारियों में से एक है. लगभग हर तीसरा व्यक्ति फैटी लिवर की किसी न किसी अवस्था से प्रभावित है। , यह चिंता का विषय है यह बीमारी प्रारंभिक अवस्था में बिना किसी लक्षण के शरीर में विकसित होती है और यदि समय रहते इसका निदान और इलाज न हो तो यह लिवर सिरोसिस, हेपेटाइटिस और यहां तक कि लिवर कैंसर तक का रूप ले सकती है।
डॉ. अभिजीत भावसार,कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, हेपैटोलॉजी एवं एंडोस्कोपी, मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने बताया कि ष्फैटी लीवर, जिसे स्टीटोसिस भी कहा जाता है, तब विकसित होता है जब लीवर की कोशिकाओं में अत्यधिक वसा (चरबी) जमा हो जाती है। लीवर शरीर का दूसरा सबसे बड़ा अंग है और यह कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है दृ जैसे भोजन और पेय से पोषक तत्वों के पाचन एवं अवशोषण में मदद करना, तथा रक्त से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को फ़िल्टर कर बाहर निकालना। जब लीवर में वसा की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है, तो उसकी कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे आगे चलकर गंभीर जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। वसा की अत्यधिक मात्रा से लीवर में सूजन हो सकती है, जो लीवर को नुकसान पहुंचा सकती है और उस पर घाव कर सकती है। गंभीर लिवर सूजन के कारण लिवर की विभिन्न स्थितियां हो सकती हैं, जैसे लिवर कैंसर और सिरोसिस।

कारणों के बारे में चर्चा करते हुए डॉ. भावसर ने कहा कि फैटी लीवर रोग दो प्रकार के होते हैं-एक अल्कोहलिक फैटी लीवर डिज़ीज़ और दूसरा एनएएफएलडी या गैर-अल्कोहलिक फैटी लीवर । अल्कोहलिक फैटी लीवर मुख्य रूप से अत्यधिक शराब के सेवन के कारण होती है। अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से लीवर की कोशिकाओं में वसा का असामान्य जमाव होने लगता है, जिससे लीवर की पाचन क्रिया प्रभावित होती है। यह स्थिति लीवर की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित कर सकती है और आगे चलकर सिरोसिस या लीवर फेल्योर जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकती है।जो लोग शराब का सेवन नहीं करते, उनके मामले में फैटी लीवर की समस्या का सटीक कारण पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे व्यक्तियों के शरीर में या तो वसा का अत्यधिक उत्पादन होता है या फिर लीवर उस वसा को ठीक से चयापचय नहीं कर पाता। नॉन-अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग उन लोगों में अधिक देखने को मिलता है जो अधिक वजन या मोटापे से ग्रसित होते हैं, टाइप 2 डायबिटीज़ या इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या से जूझ रहे होते हैं, या जिनके रक्त में ट्राइग्लिसराइड्स जैसे वसा तत्वों का स्तर सामान्य से अधिक होता है। इसके अलावा, फैटी लीवर कई अन्य कारणों से भी विकसित हो सकता है, जैसे कि कुछ दवाओं के दुष्प्रभाव (जैसे स्टेरॉयड या टेट्रासाइक्लिन), हेपेटाइटिस सी जैसे वायरल संक्रमण, दुर्लभ आनुवंशिक विकार, एनीमिया, अत्यधिक कुपोषण या अचानक वज़न में तेज़ गिरावट। कुछ मामलों में गर्भावस्था के दौरान भी यह स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह एक चिंताजनक तथ्य है कि फैटी लीवर प्रारंभिक अवस्था में कोई विशेष लक्षण नहीं दर्शाता, लेकिन यदि समय रहते इसका पता न चले और उपचार न हो, तो यह गंभीर जटिलताओं का रूप ले सकता है।
लक्षणों पर बात करते हुए डॉ. अभिजीत ने बताया कि फैटी लीवर को अक्सर एक “साइलेंट डिज़ीज़” कहा जाता है, क्योंकि इसकी शुरुआत में आमतौर पर कोई स्पष्ट लक्षण नजर नहीं आते। अधिकांश लोगों को तब तक इसके बारे में पता नहीं चलता जब तक कि वे किसी अन्य कारण से कराए गए मेडिकल टेस्ट में इसकी पहचान न हो जाए। हालांकि, जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती है, कुछ लक्षण धीरे-धीरे उभरने लगते हैं। व्यक्ति को अक्सर थकान महसूस होती है और शरीर में लगातार कमजोरी बनी रहती है। पेट के ऊपरी दाएँ हिस्से में हल्का दर्द या असहजता महसूस हो सकती है, जहाँ लीवर स्थित होता है। कुछ मामलों में भूख में कमी, वजन घटने, भ्रम या एकाग्रता में कमी जैसे लक्षण भी सामने आ सकते हैं। यदि फैटी लीवर की स्थिति गंभीर रूप ले ले, जैसे कि नॉन-अल्कोहलिक स्टीटोहेपेटाइटिस या लीवर सिरोसिस, तो त्वचा और आंखों का पीला पड़ना (पीलिया), पैरों और पेट में सूजन, और त्वचा पर खुजली जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि यदि किसी व्यक्ति को लंबे समय तक थकान, कमजोरी या पेट में असहजता की शिकायत बनी रहती है, तो उसे चिकित्सक से परामर्श लेकर आवश्यक जांच अवश्य करानी चाहिए।

फैटी लीवर का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि यह स्थिति कितनी गंभीर है और उसके पीछे क्या कारण हैं। यदि बीमारी प्रारंभिक अवस्था में है, तो जीवनशैली में सुधार सबसे प्रभावी उपचार माना जाता है। वजन घटाना, संतुलित और पौष्टिक आहार लेना, तथा नियमित रूप से व्यायाम करना लीवर में जमा अतिरिक्त वसा को कम करने में मदद करते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने शरीर के वजन का मात्र 5 से 10 प्रतिशत भी कम कर ले, तो लीवर की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार देखा जा सकता है। कुछ मामलों में विशेष दवाओं की सलाह दे सकते हैं, जो लीवर की सूजन को कम करने या मेटाबॉलिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। साथ ही, नियमित मेडिकल चेकअप और समय-समय पर लीवर फ़ंक्शन टेस्ट कराना आवश्यक है, ताकि बीमारी की प्रगति पर निगरानी रखी जा सके और समय रहते आवश्यक कदम उठाए जा सकें।

Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %
Previous post आयुक्त गढ़वाल ने चारधाम यात्रा के लिये ऑनलाइन पंजीकरण की सीमा 15 प्रतिशत बढ़ाये जाने के दिये निर्देश
Next post स्कूल चलो अभियान’ के तहत प्रत्येक विद्यालय में मनाया गया ‘प्रवेशोत्सव’