नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 28 मई को नई संसद का उद्घाटन कर दिया। इस अवसर पर पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना कर भारतीय संस्कृति के साथ नए भवन के उद्घाटन समारोह को संपन्न किया गया। चूंकि, इसी दिन सावरकर का 140वां जन्मदिन भी मनाया जा रहा है, विपक्ष ने इसको लेकर प्रश्न खड़ा किया है। सबसे ज्यादा करारा हमला राष्ट्रीय जनता दल ने किया है जिसने सबसे पहले तो नई संसद के साथ ताबूत का चित्र ट्वीट कर दिया। बाद में पार्टी के एक नेता ने आरोप लगाया कि सावरकर के जन्मदिन पर नई संसद का उद्घाटन कर इतिहास को बदलने की कोशिश की जा रही है। इस राजनीतिक विवाद से किसे और कितना लाभ होगा? कांग्रेस ने नई संसद की आवश्यकता, इस पर हुए भारी खर्च और सेंगोल के इतिहास को लेकर कई गंभीर प्रश्न उठाए हैें, लेकिन राहुल गांधी ने वीर सावरकर के जन्मदिन पर नई संसद के उद्घाटन के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा है। इसके पहले भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्होंने सावरकर को लेकर कड़ा बयान दिया था। इससे अचानक उनकी यात्रा सुर्खियों में आ गई थी। उनका यह बयान भी काफी सुर्खियों में रहा था कि ‘मैं सावरकर नहीं हूं, माफी नहीं मांगूंगा’।
राष्ट्रीय जनता दल नेता नीरज कुमार ने नई संसद के उद्घाटन को वीर सावरकर के जन्मदिन से जोड़ते हुए कहा है कि नई संसद के नाम पर देश का इतिहास बदलने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि बहुत सोच समझकर नई संसद का उद्घाटन वीर सावरकर के जन्मदिन पर किया जा रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री को मंदिरों को तोड़ने वाला बताते हुए कहा कि पुरानी संसद के सेंट्रल हॉल की भूमिका को समाप्त कर दिया गया क्योंकि उसका इतिहास पंडित नेहरू से जुड़ा हुआ था। राष्ट्रीय जनता दल इस समय भी मंडल युग के मुद्दों को उठाकर पिछड़ी-दलित जातियों को एक साथ लाने की राजनीति कर रही है। इसी मुद्दे के सहारे वह 2024 में अपनी मजबूत भूमिका तलाश रही है, लिहाजा यह मुद्दा उसे सूट करता है। इन जातियों के सहारे वह इनके बीच ज्यादा लोकप्रिय होने की कोशिश कर रही है। इसके पहले तुलसीदास और रामचरितमानस पर विवादित बयान देकर भी पार्टी ने यही कोशिश की थी। हालांकि, नीतीश कुमार ने अपनी बड़ी भूमिका को देखते हुए इन विवादों से किनारा कर लिया है। राजद की राजनीति का तुरंत असर भी देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी नई संसद के बहाने सावरकर की राजनीति को लेकर खूब चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि सावरकर के जन्मदिन पर नई संसद का उद्घाटन कर आरएसएस-भाजपा अपनी विचारधारा देश पर थोपने की कोशिश कर रही हैं। इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की पुस्तकों में भी मुगलों को हटाने, गांधी से पहले सावरकर को पढ़ाने का मुद्दा गरमाया था। इस मुद्दे ने उन बिंदुओं को दुबारा चर्चा में ला दिया है और कहा जा रहा है कि देश के इतिहास को बदलने की कोशिश की जा रही है।