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देहरादून, 30 मार्च। शैक्षणिक सत्र 2025-26 से सभी स्नातक विद्यार्थियों को अनिवार्य रूप से अप्रेंटिसशिप करनी होगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इस संबंध में पहली बार अप्रेंटिसशिप गाइडलाइन जारी की है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत लागू होगी। इसमें छात्रों को उद्योगों में रोजगार के लिए तैयार करना, संस्थान व उद्योग के बीच तालमेल बढ़ाने और कौशल की कमी दूर करने के लिए काम करना होगा।
अप्रेंटिसशिप के लिए नए दिशा-निर्देश
नए दिशा-निर्देश के तहत तीन वर्षीय डिग्री में एक से तीन सेमेस्टर और चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम में दो से चार सेमेस्टर अप्रेंटिसशिप के रहेंगे। तीन महीने की अप्रेंटिसशिप में विद्यार्थियों को 10 क्रेडिट स्कोर भी मिलेंगे। यह कदम छात्रों को रोजगार के अवसरों से जोड़ने के लिए किया जा रहा है।
संस्थानों को पंजीकरण की प्रक्रिया
उच्च शिक्षण संस्थान उद्योगों में मौजूद सुविधाओं के आधार पर अप्रेंटिसशिप की सीट तय कर सकेंगे। संस्थानों को अप्रेंटिसशिप के लिए सीधे राष्ट्रीय प्रशिक्षुता प्रशिक्षण योजना के पोर्टल पर पंजीकरण करना होगा। इसके लिए उद्योग और केंद्र सरकार से स्टाइपेंड भी मिलेगी।
मार्कशीट पर अप्रेंटिसशिप व क्रेडिट लिखना अनिवार्य
दिशा-निर्देशों के तहत अब विद्यार्थियों की मार्कशीट पर अप्रेंटिसशिप व क्रेडिट स्कोर की जानकारी लिखकर देनी होगी। अप्रेंटिसिशिप कराने की जिम्मेदारी संबंधित संस्थान की होगी। पहले सेमेस्टर में अप्रेंटिसशिप नहीं होगी, लेकिन आखिरी सेमेस्टर में अनिवार्य रहेगी।
उद्योग से जुड़ी शिक्षा का महत्व
इस पहल का एक प्रमुख उद्देश्य छात्रों को उद्योगों में काम करने के लिए तैयार करना है। उच्च शिक्षण संस्थान अपने उपलब्ध संसाधनों और उद्योगों में उपलब्ध सुविधाओं के आधार पर अप्रेंटिसशिप सीटों का निर्धारण करेंगे। इसके अलावा, केंद्र सरकार और उद्योगों से स्टाइपेंड भी प्रदान किया जाएगा ताकि विद्यार्थियों को अप्रेंटिसशिप के दौरान वित्तीय सहायता मिल सके।