देहरादून। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर के शोधकर्ताओं ने सोलर पैनल की सतहों की सफाई के लिए एक कोटिंग टेक्नोलॉजी का विकास किया है। यह कोटिंग पारदर्शी, स्कलेबल, टिकाऊ और सुपरहाइड्रोफोबिक है। यह सोलर पैनलों पर धूल जमना कम करते हैं और बहुत कम पानी से अपने-आप साफ होने की सुविधा देते हैं। इन्हें सोलर पैनल निर्माण संयंत्रों के साथ आसानी से जोड़ा जा सकता है। सेल्फ- क्लीनिंग कोटिंग पर काम करने वाले प्रधान शोधकर्ता, आईआईटी जोधपुर में एसोसिएट प्रोफेसर और मेटलर्जी एवं मटीरियल्स इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डॉ रवि के.आर. है और उनकी टीम के सदस्यों में मीगना मूर्थी जी प्रोजेक्ट सहायक और आईआईटी जोधपुर के मेटलर्जी एवं मटीरियल्स इंजीनियरिंग विभाग के रिसर्च स्कॉलर और प्रधान मंत्री रिसर्च फैलो (पीएमआरएफ) मोहित सिंह शामिल हैं। इस प्रौद्योगिकी को पेटेंट की मंजूरी के लिए भेजा गया है।
सोलर पैनल निर्माताओं का दावा है कि ये पैनल 20 से 25 वर्षों तक अपनी 80 से 90 प्रतिशत क्षमता से काम कर सकते हैं। हालांकि हम सभी यह जानते हैं कि सोलर पैनलों पर धूल और मिट्टी जमा होने से उनका काम प्रभावित होता है। इस वजह से चंद महीनों में धूल जमा होने के कारण सोलर पैनल अपनी क्षमता शुरुआती क्षमता से 10 से 40 प्रतिशत तक खो देते हैं। यह निर्भर करता है कि सौर ऊर्जा संयंत्र कहां है और यहां कि जलवायु कैसी है। सोलर पैनल साफ करने की प्रचलित विधियां महंगी, और अधिक कारगर नहीं हैं। इस तरह सोलर पैनल के उपयोग में कई व्यावहारिक समस्याएं और परिणामस्वरूप सोलर पैनल की खराबी को ठीक करना कठिन होता है। आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने इस वास्तविक समस्या से प्रेरणा ली और सुपरहाइड्रोफोबिक सामग्री का उपयोग कर सेल्फ क्लीनिंग कोटिंग का विकास किया।
आईआईटी जोधपुर में विकसित सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग में सेल्फ-क्लीनिंग का बेजोड़ गुण है और इससे ट्रांसमिटेंस या बिजली रूपांतरण क्षमता में कोई हानि नहीं दिखी है। तीव्र गति से प्रयोगशाला स्तरीय परीक्षणों से पता चला है कि यह कोटिंग मैकेनिकल और पर्यावरण स्तर पर बहुत अधिक टिकाऊ है। वर्तमान में प्रचलित फोटोवोल्टिक बिजली उत्पादन में यह कोटिंग कारगर और आसान है। इसे बस स्प्रे और वाइप करना होता है। सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग की सेल्फ-क्लीनिंग में पानी की आवश्यकता कम होती है। इस तरह यह कम खर्च पर उन क्षेत्रों में भी उपयोगी है जहां पानी की कमी रहती है।